मंत्र पुष्पांजलि -mantra pushpanjali (ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त)

मंत्र पुष्पांजलि – ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त  | mantra pushpanjali

पुष्पांजलि धार्मिक और पौराणिक परंपराओं में एक महत्वपूर्ण रूप से उच्चित की जाने वाली प्रथा है। इसमें पुष्प एक सकारात्मक भाव से भरा जाता है और यह भक्ति और समर्पणा का प्रतीक है। पुष्पांजलि के द्वारा व्यक्ति अपनी आभार और भक्ति की भावना को प्रकट करता है और अपनी मांग या विशेष इच्छा को पूरा करने के लिए देवी-देवता या पूर्वजों को प्रार्थना करता है।

पुष्पांजलि का रंग-बिरंगा सृजनात्मक अर्पण किया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के फूल और पुष्पबारिश का उपयोग किया जाता है। यह प्रतीक्षानुसार, धूप, दीप, आरती और मंत्रों के साथ संयुक्त करने से पुष्पांजलि का महत्व और भाव बढ़ जाता है।

पुष्पांजलि का यह रूप समर्पित करने से व्यक्ति को आनंद, शांति और मानसिक तनाव से राहत मिलती है। यह एक साधारण और सकारात्मक ढंग से अपनी भक्ति और समर्पणा को प्रकट करने का एक अच्छा तरीका है। इससे अस्थायी और स्थायी सुख-शांति की प्राप्ति होती है, और व्यक्ति के आंतरिक संघर्षों को भी दूर किया जा सकता है।

मंत्र पुष्पांजलि – ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त | mantra pushpanjali

  1. प्रथम:
    ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तनि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
    ते ह नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा: ॥
  2. द्वितीय:
    ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने।
    नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
    स मस कामान् काम कामाय मह्यं।
    कामेश्र्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय।
    महाराजाय नम: ।
  3. तृतीय:
    ॐ स्वस्ति, साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं
    वैराज्यं पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं ।
    समन्तपर्यायीस्यात् सार्वभौमः सार्वायुषः आन्तादापरार्धात् ।
    पृथीव्यै समुद्रपर्यंताया एकरा‌ळ इति ॥
  4. चतुर्थ:
    ॐ तदप्येषः श्लोकोभिगीतो।
    मरुतः परिवेष्टारो मरुतस्यावसन् गृहे।
    आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ॥
    ॥ मंत्रपुष्पांजली समर्पयामि ॥

मंत्र भावार्थ  

  1. देवों ने यज्ञ के द्वारा यज्ञरुप प्रजापती का पूजन किया। यज्ञ और तत्सम उपासना के वे प्रारंभिक धर्मविधि थे। जहां पहले देवता निवास करते थे (स्वर्गलोक में) वह स्थान यज्ञाचरण द्वारा प्राप्त करके साधक महानता (गौरव) प्राप्त करते हैं।
  2. हमारे लिए सब कुछ अनुकुल करने वाले राजाधिराज वैश्रवण कुबेर को हम वंदन करते हैं। वो कामनेश्वर कुबेर मुझ कामनार्थी की सारी कामनाओं को पूरा करें।
  3. हमारा राज्य सर्व कल्याणकारी राज्य हो। हमारा राज्य सर्व उपभोग्य वस्तुओं से परिपूर्ण हो। यहां लोकराज्य हो। हमारा राज्य आसक्तिरहित, लोभरहित हो। ऐसे परमश्रेष्ठ महाराज्य पर हमारी अधिसत्ता हो। हमारा राज्य क्षितिज की सीमा तक सुरक्षित रहें। समुद्र तक फैली पृथ्वी पर हमारा दीर्घायु अखंड राज्य हो। हमारा राज्य सृष्टि के अंत तक सुरक्षित रहें।
  4. राज्य के लिए और राज्य की कीर्ति गाने के लिए यह श्लोक गाया गया है। अविक्षित के पुत्र मरुती, जो राज्यसभा के सर्व सभासद है ऐसे मरुतगणों द्वारा परिवेष्टित किया गया यह राज्य हमें प्राप्त हो यहीं कामना।

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